Ram Mandir, Ayodhya

     हिन्दू पंचांग के अनुसार विक्रम सम्वत 2080 के पौष माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि के अभिजीत मुहूर्त में अर्थात इसाई कैलंडर के दिनांक 22 जनवरी 2024 दोपहर को अयोध्या में प्रभु श्री रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होगीl इस दिन “हरि यानी विष्णु मुहूर्त” है, जो 41 साल बाद आया हैl
     जैसा कि हम सभी जानते हैं कि श्रीराम जन्मभूमि की पुनः प्राप्ति के लिए 500 वर्षों तक संघर्ष हुआ किन्तु आश्चर्य की बात यह है कि स्वतंत्र भारत में भी इस पुण्य क्षेत्र को प्राप्त करने के लिए हिन्दू समाज को बहुत कुछ दाव पर लगाना पड़ा श्रीराम जन्मभूमि के लिए इसमें संघर्ष करने वाले प्रत्येक व्यक्ति का योगदान महत्वपूर्ण है किन्तु इसमें भी कुछ मील के पत्थर सिद्ध हुए आज उनमें से ही कुछ मील के पत्थरों के विषय में हम जान लेते हैं l किन्तु विशेष बात यह है कि इन चार मील के पत्थरों में एक पत्थर डॉ. ए.पी.जे. कलाम सरीखा मुस्लिम व्यक्ति भी है l
स्वतन्त्र भारत में श्रीराम जन्मभूमि के इन नायकों में यदि सबसे पहले कोई नाम लिया जाना चाहिए तो वह नाम है केरल में जन्मे श्री के.के. नायर जी का जो 1949 में अयोध्या के कलेक्टर थे l
– के.के.नायर

K K Nayar

     के.के. नायर का पूरा नाम “कंडांगलम करुणाकरण नायर” था। उनका जन्म 7 सितंबर 1907 को केरल के अलाप्पुझा के गुटनकाडु नामक गांव में हुआ था। देश की स्वतंत्रता से पूर्व वह इंग्लैंड गए और 21 साल की उम्र में बैरिस्टर बन गए और घर लौटने से पहले आइसीएस परीक्षा में सफल हुए। वे थे तो 1926 बैच के आइसीएस अधिकारी, लेकिन वह रामलला के प्राकट्य की पटकथा के पूरक के रूप में एक मील का पत्थर हैं। वह मूल रूप से केरल के रहने वाले थे और काफी पढ़े-लिखे थे। मद्रास यूनिवर्सिटी से उच्च शिक्षित नायर बेहद प्रतिभाशाली थे। वह अनेक भाषाओं के ज्ञाता थे।
     के.के. नायर को तब के फैजाबाद (अभी अयोध्या) का जिलाधिकारी बने छह माह से कुछ अधिक समय ही हुआ था। यद्यपि वे तब तक अयोध्या का इतिहास और भूगोल समझ चुके थे। उन्हें दो वर्ष पूर्व मिली स्वतंत्रता और उसके बाद की अल्पवयस्क व्यवस्थापिका का भी बोध था। जब भी वे अयोध्या में खड़े उस विवादित ढांचे को देखते तो उनका मन पीड़ा से भर उठता थाl

     फैजाबाद में जिलाधिकारी के रूप में आते ही उनका ध्यान रामजन्मभूमि की ओर था। उन जैसा प्रशासक स्वाभाविक रूप से एक ऐसे विषय को फालो कर रहा था जो लंबे समय से संवेदनशील एवं एक धर्म-संस्कृति की अस्मिता का परिचायक था। श्री रामजन्मभूमि बनाम बाबरी मस्जिद का संघर्ष 1934 में ही निर्णायक मोड़ से होकर गुजरा था। तब विवादित भवन पर कब्जा जमाए रखने के लिए दोनों पक्षों में रक्तरंजित संघर्ष हुआ। इस संघर्ष में राम भक्त उस ढांचे को क्षति पहुंचाने में सफल रहे, जिसे 1528 में मंदिर की आधारभूमि पर विवादित ढांचे का स्वरूप प्रदान किया गया था और तत्कालीन ब्रिटिश प्रशासन ने कई साधारण राम भक्तों से लेकर संतों-महंतों को आरोपित बना रखा था।
22-23 दिसंबर 1949 की रात एक दिन यकायक श्री रामजन्मभूमि पर रामलला के प्रकट होने का समाचार समस्त देश में फ़ैल गया और केंद्र की तत्कालीन जवाहरलाल नेहरू की सरकार एवं प्रदेश की गोविंदवल्लभ पंत की सरकार हिन्दू भावनाओं की अनदेखी कर जिलाधिकारी के.के. नायर पर मूर्ति हटवाने का दबाव बनाने लगी। जवाहरलाल नेहरू ने राज्य सरकार को जांच कर रिपोर्ट सौंपने का आदेश दिया था। जवाहरलाल नेहरु को देश में दो टुकड़े काट कर मुसलमानों के देने के बाद भी मुसलमानों की इतनी चिंता थी कि जिसके लिए हिन्दुओं की भावनाओं को ऐसे अनदेखा कर दिया जैसे कि हिन्दू यहाँ शरणार्थी हों l
       मुख्यमंत्री गोविंद वल्लभ पंत ने के.के. नायर को वहां जाकर पूछताछ करने का निर्देश दिया। नायर ने अपने अधीनस्थ तत्कालीन सिटी मजिस्ट्रेट गुरुदत्त सिंह को जांच कर रिपोर्ट सौंपने को कहा।
       सिटी मजिस्ट्रेट गुरुदत्त सिंह की रिपोर्ट में कहा गया है कि हिन्दू अयोध्या को भगवान राम (रामलला) के जन्मस्थान के रूप में पूजते हैं, लेकिन मुसलमान वहां दावा कर समस्याएं पैदा कर रहे हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि वहां एक बड़ा मंदिर बनाया जाना चाहिए। उनकी रिपोर्ट में कहा गया कि सरकार को इसके लिए जमीन आवंटित करनी चाहिए और मुसलमानों के उस क्षेत्र में जाने पर प्रतिबंध लगाना चाहिए और उस रिपोर्ट के आधार पर नायर ने मुसलमानों को मंदिर के पांच सौ मीटर के दायरे में जाने पर रोक लगाने का आदेश जारी किया। दूसरी ओर उन्होंने एक और आदेश जारी किया, जिसमें कहा गया कि प्रतिदिन श्री राम के बाल रूप की पूजा की जानी चाहिए और आदेश में यह भी कहा गया कि सरकार को पूजा का खर्च और पूजा कराने वाले पुजारी का वेतन वहन करना चाहिए। इस आदेश से घबराकर नेहरू ने तुरंत के.के. नायर को नौकरी से हटाने का आदेश दे दिया। बर्खास्त किए जाने पर नायर इलाहाबाद अदालत में गए और स्वयं नेहरू के विरुद्ध सफलतापूर्वक बहस की और जीते l कोर्ट ने आदेश दिया कि के.के. नायर को बहाल किया जाए और उसी स्थान पर काम करने दिया जाए।
      के.के. नायर की भूमिका से प्रमुदित अयोध्या के लोगों ने उनसे चुनाव लड़ने का आग्रह किया। नायर ने बताया कि एक सरकारी कर्मचारी होने के नाते वह चुनाव में खड़े नहीं हो सकते। 1952 में उन्होंने सेवा से त्यागपत्र दे दिया।
      वर्ष 1962 में जब लोकसभा के चुनावों की घोषणा हुई, तो लोग के.के. नायर और उनकी पत्नी श्रीमती शकुंतला नायर को चुनाव लड़ने के लिए मनाने में सफल रहे। के.के. नायर बहराइच और उनकी पत्नी कैसरगंज से सांसद चुनी गईं। शकुंतला नायर बाद में दो बार और सांसद बनीं। 7 सितंबर 1977 को अपने गृह नगर में इस हिन्दू योद्धा ने अंतिम सांस ली।

– कल्याण सिंह (पूर्व मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश)

Kalyan Singh

      बाबरी ढांचा 6 दिसंबर 1992 को विध्वंस हुआ था इस बात को 31 वर्ष हो गए हैं। अयोध्या में बनते राम मंदिर के पीछे बसे पूरे शहर में इस शौर्य को सामने से देखने वाले लोग अब अपनी उम्र के दूसरे पड़ाव तक आ गए हैं। मंदिर के निर्माण और दीपोत्सवों में दिखती नई अयोध्या आज भी 3 दशक पुराना वह दिन याद करती है तो मन में बहुत सी स्मृतियां कई नाम लेकर आती है। “जय श्री राम’ का जयघोष, सौगंध राम कि खाते हैं हम मंदिर वहीं बनाएंगे” के नारे और कारसेवकों के जोश देखने वाली अयोध्या को एक चेहरा आज भी एक महानायक के रूप में याद है।
      और उस चेहरे का नाम है – “कल्याण सिंह” । 31 साल पहले 1992 के उस रोज अयोध्या में जब विवादित ढांचे के तीनों गुंबद टूटे तब तक कल्याण यूपी के सीएम थे, लेकिन कुछ देर बाद नहीं रहे। कल्याण ने लहराकर अपना इस्तीफा तत्कालीन राज्यपाल सत्यनारायण रेड्डी को सौंपा और कहा- कोई मुकदमा चलाना है तो मुझपर चलाओ। राम मंदिर के लिए ऐसी कई सरकारें कुर्बान करता हूं।
       6 दिसंबर 1992 को शाम करीब 6 बजे कल्याण ने इस्तीफे के बाद मीडिया से बात की थी। इस प्रेस कॉन्फ्रेंस के कई वीडियो आज भी सोशल मीडिया पर मिल जाते हैं। लेकिन एक इंटरव्यू और था जो बताता था कि कल्याण का राम मंदिर आंदोलन पर स्टैंड क्या था? एक प्राइवेट चैनल पर दिए इंटरव्यू में कल्याण सिंह से सवाल हुआ कि क्या आपको अयोध्या में ढांचा गिरने का अफसोस है। कल्याण का जवाब था- मुझे ना दुख है, ना पश्चाताप और ना प्रायश्चित। मैंने अपने अधिकारियों से कहा था कि गोली नहीं चलाई जाएगी क्योंकि अगर ऐसा होता तो हजारों लोग मारे जाते। मैंने ये भी कहा था कि जो कुछ भी हुआ उन सब की जिम्मेदारी मैं लेता हूं। कल्याण ने कहा कि मुझे ढांचा गिरने का ना दुख है, ना प्रायश्चित और ना दुख। 6 दिसंबर 1992 राष्ट्रीय शर्म का नहीं, राष्ट्रीय गर्व का दिन है।

      अपने अग्रेसिव स्टैंड, भाषण शैली और दमदार व्यक्तित्व के कारण कल्याण 1990 के दशक में राम मंदिर आंदोलन के नायक के रूप में उभरे और 1991 का विधानसभा चुनाव उनके नेतृत्व में लड़ा गया। पूर्ण बहुमत की भारतीय जनता पार्टी की सरकार में वह जून 1991 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने लेकिन छह दिसंबर 1992 को अयोध्या के विवादित ढांचा विध्वंस के बाद उन्हों ने मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया। कहा ये भी जाता है कि कल्याण के इस्तीफे की स्क्रिप्ट पीएम नरसिम्हा राव की शह पर लिखी गई थी। लेकिन सच में ऐसा था ये स्पष्ट नहीं हुआ। ये जरूर था कि कल्याण सिंह की सरकार को बर्खास्त करने के लिए दिल्ली से नरसिम्हा राव ने तत्कालीन राज्यपाल को निर्देशित किया। लेकिन इससे पहले कि सरकार गिरती कल्याण ने खुद इस्तीफा दे डाला।

– मोरोपंत पिंगले 

Ram Janmbhoomi

     मोरेश्वर नीलकंठ पिंगले, जिन्हें “मोरोपंत” के नाम से जाना जाता है, एक बहुत ही बहुमुखी व्यक्तित्व थे। वह प्राचीन वैदिक सरस्वती नदी का मार्ग खोजने जैसी कई पथप्रदर्शक परियोजनाओं और एकात्मता यज्ञ जैसे हिंदू समाज की कल्पना को पकड़ने वाले जन आंदोलनों और सबसे विशेष रूप से राम जन्मभूमि आंदोलन के पीछे मस्तिष्क और प्रेरक शक्ति थे। मोरोपंत डॉ. हेडगेवार और श्री गुरुजी दोनों के मार्गदर्शन में प्रशिक्षित कुछ व्यक्तियों में से एक थे। 1941 में अंग्रेजी में स्नातक की डिग्री के साथ स्नातक होने के बाद, वह पूर्णकालिक संघ प्रचारक बन गये। 1946 में, 26 वर्ष की आयु में, उन्हें महाराष्ट्र और विदर्भ के सह प्रांत प्रचारक के रूप में नियुक्त किया गया। मोरोपंत ने प्रचार से परहेज किया। उसका सबसे अच्छा वर्णन ऐसे व्यक्ति के रूप में किया जाएगा जो हर जगह है फिर भी कहीं नहीं है; सुप्रसिद्ध और फिर भी कम ज्ञात, व्यापक और फिर भी कभी घुसपैठ नहीं करने वाले और एक स्वयंसेवक की सच्ची भावना में रहते थे। 1946 से 1967 तक वे महाराष्ट्र में प्रचारक रहे और बाद में वे विश्व हिन्दू परिषद् के मार्गदर्शक रहे l
       विश्व हिन्दू परिषद’ के मार्गदर्शक होने के नाते उन्होंने ‘श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन’ को हिन्दू जागरण का मंत्र बना दिया. श्री रामजानकी रथ यात्रा, ताला खुलना, श्रीराम शिला पूजन, शिलान्यास, श्रीराम ज्योति, पादुका पूजन आदि कार्यक्रमों ने देश में धूम जागरण का कार्य किया. छह दिसम्बर, 1992 को बाबरी कलंक का परिमार्जन इसी जागरण का सुपरिणाम था l

     गोवंश रक्षा के क्षेत्र में भी उनकी सोच बिल्कुल अनूठी थी. उनका मत था – गाय की रक्षा किसान के घर में ही हो सकती है, गोशाला या पिंजरापोल में नहीं. गोबर एवं गोमूत्र भी गोदुग्ध जैसे ही उपयोगी पदार्थ हैं. यदि किसान को इनका मूल्य मिलने लगे, तो फिर कोई गोवंश को कोई नहीं बेचेगा. उनकी प्रेरणा से गोबर और गोमूत्र से साबुन, तेल, मंजन, कीटनाशक, फिनाइल, शैंपू, टाइल्स, मच्छर क्वाइल, दवाएं आदि सैकड़ों प्रकार के निर्माण प्रारम्भ हुए. ये मानव, पशु और खेती के लिए बहुउपयोगी हैं. अब तो गोबर और गोमूत्र से लगातार 24 घंटे जलने वाले बल्ब का भी सफल प्रयोग हो चुका है
     उनका मत था कि भूतकाल और भविष्य को जोड़ने वाला पुल वर्तमान है. अतः इस पर सर्वाधिक ध्यान देना चाहिए. उन्होंने हर स्थान पर स्थानीय एवं क्षेत्रीय समस्याओं को समझकर कई संस्थाएं तथा प्रकल्प स्थापित किये. महाराष्ट्र सहकारी बैंक, साप्ताहिक विवेक, लघु उद्योग भारती, नाना पालकर स्मृति समिति, देवबांध (ठाणे) सेवा प्रकल्प, कलवा कुष्ठ रोग निर्मूलन प्रकल्प, स्वाध्याय मंडल (किला पारडी) की पुनर्स्थापना आदि की नींव में मोरोपंत जी ही हैंl
     मोरोपंत जी के जीवन में निराशा एवं हताशा का कोई स्थान नहीं था. वे सदा हंसते और हंसाते रहते थे l अपने कार्यों से नई पीढ़ी को दिशा देने वाले मोरोपंत पिंगले जी का 21 सितम्बर, 2003 को नागपुर में ही देहांत हुआ.

– के.के. मुहम्मद

K K Mohammad

      के.के. मुहम्मद का जन्म केरल के कोडुवैली कालीकट में एक मध्यम वर्गीय परिवार में बीरन कुट्टी हाजी और मरियम के घर हुआ था । के.के. मुहम्मद पांच भाई-बहनों में दूसरे नंबर पर हैं। गवर्नमेंट हायर सेकेंडरी स्कूल, कोडुवल्ली से अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद, उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से इतिहास में मास्टर डिग्री (1973-75) और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के स्कूल ऑफ आर्कियोलॉजी से पुरातत्व में स्नातकोत्तर डिप्लोमा (1976-77) प्राप्त किया ।
      के.के. मुहम्मद 1976 में बी.बी. लाल के नेतृत्व में बाबरी मस्जिद की खुदाई का हिस्सा थे । उन्होंने एक रेडिफ साक्षात्कार में कहा कि उन्हें मस्जिद के पश्चिमी हिस्से में एक मंदिर के अवशेष मिले हैं। इस मंदिर का निर्माण 10वीं और 11वीं शताब्दी के बीच गुर्जर-प्रतिहार राजवंश के दौरान किया गया था । हालाँकि, उनके निष्कर्षों को मार्क्सवादी इतिहासकार इरफ़ान हबीब ने दबा दिया था, जिनके बारे में उनका कहना है कि वे भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद और कई प्रमुख समाचार पत्रों के प्रति बहुत शक्तिशाली और प्रभावशाली थे ।
      मुहम्मद ने यह भी कहा कि उन्हें खुदाई में 12 स्तंभ मिले हैं जिनका निर्माण हिन्दू प्रतीकों के साथ किया गया था, जिसमें “अष्टमंगल” चिन्ह भी शामिल थे। उन्हें मनुष्यों और जानवरों की टेराकोटा मूर्तियाँ भी मिलीं, जिनका उपयोग मुहम्मद यह अनुमान लगाने के लिए करते हैं कि मस्जिद से पहले एक मंदिर मौजूद था।
       के.के. मुहम्मद आगे बताते हैं कि खुदाई में शामिल एकमात्र मुस्लिम होने के नाते, उन्हें प्रोफेसर बी.बी. लाल का बचाव करने के लिए 15 दिसंबर 1990 को द इंडियन एक्सप्रेस समाचार पत्र में अपनी राय प्रकाशित करनी पड़ी थी, जिन पर पुष्टि न करने के लिए वामपंथियों द्वारा लगातार हमला किया जा रहा था।

          2016 में, के.के. मुहम्मद की मलयालम भाषा की आत्मकथा “नजन एन्ना भारतीयन” (“आई, द इंडियन”) रिलीज़ हुई थी। यह पुस्तक उनके इस दावे के कारण विवाद में आ गई कि इरफान हबीब जैसे “मार्क्सवादी इतिहासकारों” ने चरमपंथी मुस्लिम समूहों का पक्ष लिया और अयोध्या विवाद का सौहार्दपूर्ण समाधान खोजने के प्रयासों को पटरी से उतार दिया ।
     उनके अनुसार, अयोध्या में पुरातात्विक खुदाई से मस्जिद के नीचे एक मंदिर की उपस्थिति के स्पष्ट संकेत मिले, लेकिन इरफान हबीब जैसे वामपंथी इतिहासकारों ने इन्हें खारिज कर दिया, और यहां तक कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय को गुमराह करने की भी कोशिश की ।
    कुल मिलाकर यह कहना गलत न होगा कि यह वह भारत भूमि है जिसमें जब जैसी आवश्यकता होती यह धरती तब वैसे ही फल देती है l धर्म कि रक्षा हेतु जब बलिदान देने की आवश्कता हुई तो सैकड़ों बलिदानी उठ खड़े हुए और जब धर्म जागरण का प्रश्न उठा तो हजारों संत प्रकट हो गए l 

error

If you liked this article please share it with your friends

LinkedIn
Share
WhatsApp
URL has been copied successfully!
Scroll to Top