
भारत केवल एक देश ही नहीं एक सांस्कृतिक राष्ट्र हैं इस देश में बहुत सी विचारधाराएँ आयीं और इस संस्कृति में ही विलीन हो गईं l इसमें परिवार व्यवस्था का बहुत बड़ा महत्व है इसी का उन्नत रूप था संयुक्त परिवार व्यवस्था ! इसी व्यवस्था में बच्चे संस्कारित होते थे और समाज में सुरक्षित भी रहते थे किन्तु समाज में चल रहे विघटनकारी षड्यंत्रों को अनजाने में ही लाभप्रद मानकर ये संयुक्त परिवार आज घर की एक ही चारदीवारी में अलग अलग कई परिवार रह रहे हैं l
सरकारों द्वारा विभिन्न उपक्रमों जैसे बिजली, पानी, एलपीजी सिलिंडर आदि पर चलाये जा रहे कुछ “टेरिफ प्लान” जो अलग अलग राज्यों अलग अलग भाव के हैं जिसमें सीमाएं निर्धारित की हुई हैं कि 1-200 यूनिट तक 200-400 यूनिट और उससे ऊपर, इसी तरह जल का और रसोईघर के गैस सिलिंडर का ! इससे हमें यह लगता है कि इन टैरिफों से बिजली, जल और एलपीजी की खपत कम होगी लेकिन ऐसा नहीं है बल्कि इसके प्रभाव परिवारों में पड़ते हैं उदाहरण के लिए एक 50 गज के घर में तीन भाई रहते हैं l माता-पिता ने उनके लिए तीन तल बनवा दिए और तीनों एक साथ मिलजुल कर रहते थे तीनों बहुएं एक साथ खाना पकाती हैं बच्चे दादा-दादी से के पास समय बिताते हैं और संस्कारित होते हैं, बच्चों को स्कूल छोड़ने के लिए चाचा-ताऊ अथवा कोई बड़ा भाई-बहन उपलब्ध होता है l
फिर एक दिन घर पर बिजली का बिल देख कर चर्चा होती है कि तीनों फ्लोर पर अलग अलग मीटर अप्लाई कर देते है इससे बिजली का भुगतान 200X3.00 यूनिट के हिसाब से 600 रुपए ही करना होगा अभी बिल में 530 यूनिट खर्च हुए हैं

जिसके कारण (200X3.00)+(200X4.50)+(130X6.50)=2670 देने पड़ रहे हैं l
अब घर में तीन मीटर लग गए और सभी अपना अपना बिल भरने लगे l लेकिन सबसे नीचे वाले तल पर रहने वाले भाई पर ज्यादा बोझ आ गया क्योंकि उसके तल वाले मीटर पर पानी की मोटर, फ्रिज, वाशिंग मशीन आदि चल रहे हैं इस कारण सबसे अलग अलग मोटर, फ्रिज और वाशिंग मशीन लेने को कह दिया जाता है l अब इसके परिणाम क्या होंगे आप जानते ही हैं कि जिस घर में एक टंकी में लगी थी अब तीन टंकी लगी हैं, एक फ्रिज के स्थान पर तीन फ्रिज चल रहे हैं और वाशिंग मशीन भी तीन आ गई हैं l इससे बिजली की खपत कम हुई या अधिक ?
यही सब पानी के 20000 लीटर के टैरिफ और एलपीजी के सिमित सिलिंडर कर देने के कारण हुआ जिसमें आपको बिजली, पानी और सिलिंडर परिवार के सदस्यों की गिनती के हिसाब से नहीं मिलेगा l कुल मिलकर भारतीय समाज बाजारवाद के षड्यंत्रों का शिकार हो चुका है क्योंकि हमने स्वयं को वैश्विक घोषित करने के लिए अपनी अर्थव्यवस्था और नीतियों को ताक पर रखकर विश्व को एक बाज़ार समझने की प्रवृति वाली नीतियों को अपना लिया है स्वदेशी नीतियाँ “विश्व को परिवार मानती हैं जबकि पश्चिमी नीतियाँ विश्व को बाज़ार मानती हैं l हमारा अपना इतना उन्नत अर्थशास्त्र और अर्थनीति होने के बाद भी यदि हम उन नीतियों का अनुसरण कर रहे हैं जिनका उद्देश्य केवल शोषण करना ही है तो समाज कभी संतुष्ट और सुरक्षित न हो सकेगा l
इस प्रकार की पोषित नीतियों का असर समाज में देखने को मिल रहा है किशोरावस्था तक साथ रहने वाले भाई आज संपत्ति के लिए एक दुसरे के शत्रु बने हुए हैं, एक ही चारदिवारी में रहने वाले भाई आपस में साथ नहीं बैठते क्योंकि अब उनकी मानसिकता अपना अपना करने की हो चुकी है l जिस कारण घर के बड़े-बूढ़े भटक रहे हैं या वृद्धाश्रम में छोड़े जा रहे हैं जबकि इसी समाज के आदर्श माता-पिता की सेवा करने वाले श्रवण कुमार और पिता के वचन के लिए 14 वर्ष का वनवास भोगने वाले भगवन श्रीराम हैं l
इससे पहले कि भारतीय समाज का ताना-बाना, मर्यादाएं और संस्कार नष्ट हो जाएँ समाज और समाज के प्रतिनिधियों को इस ओर ध्यान देना चाहिए l
thanks
Currently we forget family values
Nice information
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